-ज्ञानेन्द्र कुमार
सदियों की ठंडी,
बुझी राख
सुगबुगा उठी
मिट्टी, सोने का
ताज पहन
इठलाती है
दो राह, समय
के रथ
का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो
कि जनता
आती है।।
रामधारी सिंह दिनकर
की कविता
की उक्त
लाइनें तब
भी प्रासंगिक
थीं जब
इंदिरा गांधी
शासनकाल के
दौरान कांग्रेस
की दमनकारी
नीतियों के
खिलाफ राम
मनोहर लोहिया
ने हूंकार
भरी थी
और ये
लाइनें आज
भी इतनी
ही प्रासंगिक
हैं क्योंकि
भाजपा के
दबदबे को
धता बताते
हुए अरविंद
केजरीवाल ने
भी लोहिया
की तर्ज
पर ही
हूंकार भरी
और अपने
लिए सिंहासन
खाली करवा
लिया। मानो
उन्होंने मोदी
से कह
दिया हो
कि दिल्ली
का सिंहासन
खाली करो
कि ‘आप’
आती है।
यकीनन केजरीवाल
का दिल्ली
फतह किसी
अजूबे से
कम नहीं
था। केजरीवाल
ने सभी
राजनीतिक पंडितों
के चुनावी
गणित को
फेल कर
दिल्ली में
वोटों की
सुनामी ला
दी और
इस सुनामी
में भाजपा
डूब गई।
कांग्रेस का
तो पता
ही नहीं
चल सका
कि वो
थी भी?
भाजपा का
तीन सीटों
का विपक्ष
शायद ही
लोग विधानसभा
में पहली
बार देखेंगे।
आम आदमी पार्टी की अप्रत्याशित जीत
के कई
मायने निकाले
जा सकते
हैं। इसी
तरह भाजपा
की हार
के भी
कई कारण
ढूंढे जा
सकते हैं।
वहीं कांग्रेस
भी चिंतन
की मुद्रा
में है,
लेकिन यह
सब तो
पार्टी और
उसके संगठन
की मजबूती
की बातें
हैं। इससे
दिल्ली की
जनता का
कोई लेना-देना नहीं
है, उसने
तो वोट
विकास के
लिए दिया
है। यह
सच है
कि दिल्ली
के लोगों
के कोई
बड़े सपने
नहीं हैं।
दिल्ली में
आज भी
मुद्दे वही
हैं जो
आजादी के
बाद थे।
वे मुद्दे
हैं बिजली,
पानी और
मूलभूत सुविधाएं।
भाजपा की
मुख्यमंत्री पद की प्रत्याशी किरण
बेदी ने
लोगों से
दिल्ली को
वल्र्डक्लास सिटी बनाने के लिए
वोट मांगे,
शायद तभी
जनता ने
उनकी भी
जमानत जब्त
करा दी।
देश भर
में लोग
आज भी
बिजली, पानी
और आवास
के लिए
संघर्ष कर
रहे हैं।
लोगों को
पता है
कि वल्र्ड
क्लास सिटी
से ज्यादा
उनके लिए
ये
मूलभूत सुविधाएं हैं जिनके बिना
उनका जीवन
कष्टमय है।
आधी दिल्ली
पानी के
लिए जूझ
रही है।
दिल्ली के
कई इलाकों
में पीने
का पानी
लोगों को
घंटों लाइन
लगाकर भरना
पड़ता है।
इसमें समय
और श्रम
दोनों ही
बर्बाद होते
हैं। जब
पीने के
पानी के
लिए लोगों
को इतना
संघर्ष करना
पड़ रहा
हो तो
वे क्या
वल्र्ड क्लास
सिटी देखेंगे
और फिर
ऐसी वल्र्ड
क्लास सिटी
बन भी
जाती है
तो क्या
उनका संघर्ष
कम हो
जाएगा? पानी
के लिए
श्रम ही
उनकी जीविका
बनती जा
रही है
मगर यहां
यह बताना
जरूरी है
कि दिल्ली
एक केंद्रशासित
राज्य है
और यहां
के सभी
नगर निगम
गृह मंत्रालय
के अधीन
हैं। ऐसे
में केजरी
सरकार के
लिए समस्याएं
कम नहीं
हैं। बात
बिजली की
भी। दिल्लीवासियों
के अलावा
बाहरी प्रदेशों
के भी
लाखों लोग
दिल्ली में
बसे हैं।
ऐसे सभी
लोगों के
लिए दिल्ली
में बिजली
एक बड़ा
मुद्दा है।
यदि केजरी
सरकार से
लोगों को
बिजली के
बिल आधे
होने की
आस है
तो लोगों
की
इन उम्मीदों को भी केजरी
सरकार को
सिर आंखों
पर रखना
होगा मगर
सच्चाई यह
है कि
बिजली वितरण
निजी कंपनी
के हाथों
में है
जिसका सालों
से ऑडिट
तक नहीं
हुआ है।
बिजली कंपनी
की सहमति
के बिना
जनता को
सस्ती बिजली
देना मुश्किल
भरा कदम
होगा। यह
कहना गलत
न होगा
कि केजरीवाल
मंत्रिमंडल के आने वाले दिन
बड़े संघर्ष
के हो
सकते हैं।
केजरी सरकार
की असली
‘अग्निपरीक्षा’ तो अब शुरू होगी
जब जमीनी
स्तर पर
विकास का
खाका तैयार
किया जाएगा।
अब मुख्यमंत्री
केजरीवाल की
लड़ाई वहीं
से शुरू
होनी चाहिए
जहां से
उन्होंने पिछले
2 अक्टूबर को झाड़ू लगाई थी।
यानि दिल्ली
की वो
बजबजाती नालियां
जिनके किनारे
लोगों का
एक बड़ा
समूह निवास
कर रहा
है। वहां
तक केजरीवाल
की झाड़ू
पहुंचनी चाहिए।
केजरीवाल को
यह नहीं
भूलना चाहिए
कि उन्हें
किसी खास
मतदाता ने
नहीं बल्कि
आम मतदाता
ने जिताया
है, इससे
उन्हें सबसे
पहले आम
लोगों को
ही खास
समझकर उनके
जीवन-यापन
में बदलाव
लाने की
जरूरत है।
दिल्ली के बड़े
मुद्दों में
संपूर्ण राज्य
और कानून-व्यवस्था भी
एक मुद्दा
है और
यह शपथ
लेने से
पहले केजरीवाल
ने मोदी
और राजनाथ
से मुलाकात
के दौरान
इसे उठाया
भी। पर
यह केजरी
सरकार के
लिए आत्मसम्मान
का मुद्दा
नहीं बनना
चाहिए क्योंकि
संसद में
दो तिहाई
बहुमत के
बिना दिल्ली
को संपूर्ण
राज्य का
दर्जा नहीं
मिल सकता।
इसके अलावा
दिल्ली पुलिस
पर राज्य
सरकार का
कोई नियंत्रण
नहीं है।
वह केंद्र
सरकार विशेषकर
गृह मंत्रालय
के अधीन
काम करती
है। इसलिए
यह तय
है कि
इसे केंद्र
आसानी से
नहीं छोड़ने
वाला है।
ऐसे में
केजरी सरकार
के धैर्य
की भी
परीक्षा होगी
कि वो
‘कानून-व्यवस्था’
को केंद्र
से छीनने
में तरजीह
देते हैं
या फिर
दिल्ली के
विकास को
क्योंकि विकास
से सीधा
फायदा उस
जनता को
होगा जिसे
केजरीवाल ने
अपने साथ
रामलीला मैदान
में शपथ
दिलाई है।
आप की
जीत में
भागीदार बने
उन 1.7 करोड़
लोगों को
भी केजरीवाल
को नहीं
भूलना चाहिए
जो दिल्ली
के नांगलोई
सहित उन
हजारों कॉलोनियों
में रहते
हैं जो
कि अवैध
हैं। इन
इलाकों में
रहने वाले
लोग भी
केजरीवाल की
ओर बड़ी
उम्मीद से
टिकटिकी लगाए
हैं कि
कब उन्हें
मूलभूत सुविधाएं
मिलेंगी मगर
यहां भी
केजरी सरकार
के लिए
अड़ंगे कम
नहीं होंगे
क्योंकि शहर
के विकास
का जिम्मा
डीडीए पर
है जो
केंद्रीय शहरी
विकास मंत्रालय
के अधीन
आता है।
इसके अलावा
केजरीवाल जीबी
रोड की
उन सेक्स
वर्कर्स को
भी नजरअंदाज
नहीं कर
सकते जो
उनकी जीत
में सहभागी
हैं। दिल्ली
में रिकॉर्ड
67.08 फीसदी वोटिंग में ईवीएम में
1500 ऐसी उंगलियों
ने भी
दस्तक दी
जो उम्मीद
रखती हैं
कि उनका
नेता उनकी
पहचान पर
उंगलियां नहीं
उठने देगा।
इन सेक्स
वर्कर्स को
भी नई
सरकार से
उम्मीद है
कि वो
प्रॉस्टीट्यूशन को वैध करेगी। खैर,
जनता के
अपने-अपने
मुद्दे हैं
मगर इन
मुद्दों और
इन लोगों
की वजह
से केजरी
‘वाल’ बनकर
मोदी से
भिड़ सके।
‘आप’ की
जीत और
केजरीवाल के
आने वाले
मुश्किल भरे
सफर के
बीच रामधारी
सिंह दिनकर
की वही
पंक्तियां याद आती हैं।
हूंकारों से
महलों की
नींव उखड़
जाती
सांसों के बल
से ताज
हवा में
उड़ता है,
जनता की रोके
राह, समय
में ताव
कहां?
वह जिधर चाहती
काल उधर
ही मुड़ता
है।
सबसे विराट जनतंत्र
जगत का
आ पहुंचा
तैंतीस कोटि हित
सिंहासन तैयार
करो
अभिषेक आज राजा
का नहीं
प्रजा का है
तैंतीस कोटि जनता
के सिर
पर मुकुट
धरो
दो राह, समय
के रथ
का घर्घर-नाद सुनो
सिंहासन खाली करो
कि जनता
आती है।।
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