Thursday, March 3, 2016

सवाल यही, कहां खड़ा हरियाणा


-ज्ञानेन्‍द्र कुमार
आज हरियाणा जल रहा है और इस आग में लोगों के सपनों के साथ उनके अरमान भी धुआं हुए हैं। सियासतदां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्‍यारोप में व्‍यस्‍त हैं। पूरा प्रदेश जाट बनाम गैर जाट की अघोषित लड़ाई लड़ चुका है। अब शांति है मगर तनावपूर्ण। पूरा प्रदेश बुरी तरह पिछड़ चुका है। एसोचैम ने 20 हजार करोड़ रुपये के नुकसान का आकलन किया है। अब थोड़ा पीछे चलते हैं। वैलेंटाइन डे जो कि मुहब्‍बत के इजहार का दिन माना गया है, ऐसे दिन हरियाणा के सांपाला में आरक्षण के लिए आंदोलन का बिगुल फूंक दिया। हालांकि इससे दो दिन पहले 12 फरवरी को हिसार जिले में मय़यड़ ट्रैक पर सांगवान खेमे ने टेंट गाड़ दिया था मगर मय़यड़ से आंदोलन खत्‍म होने की घोषणा होते ही सांगवान को सरकारी प्‍यादा घोषित करते हुए इस आंदोलन में प्रदेश भर की खाप पंचायतें कूद पड़ीं। इस बार केंद्र बना रोहतक। रोहतक क्‍यों क्‍योंकि यह वो चौराहा है जहां से पूरा प्रदेश जुड़ता है। जाटों ने पटरी से लेकर हाईवे तक जाम कर दिया। जाटों की सुरक्षा में तीन से चार किमी दूर पुलिस जुट गई। पुलिस पर भी आरोप लगे कि उन्‍होंने जाटों को पूरा संरक्षण दिया। जाटों को बल मिला और आंदोलन सुनियोजित होने लगा, ऐसा प्रतीत हुआ। देखते ही देखते आंदोलन हिंसक हो गया। जाट और गैर जाट आमने-सामने हो गए। पुलिस तमाशबीन हो गई, सरकार पंगु हो गई। आरक्षण के लिए शुरू किया गया आंदोलन जातीय हिंसा में बदल गया। जाटों के सामने 35 बिरादगी खासकर सैनी जाति के लोग थे। देखते ही देखते तबाही और उन्‍माद का ऐसा मंजर चला, जिसकी गूंज दिल्‍ली तक सुनाई दी। दिल्‍ली जागी मगर सरकार अभी तक सोई हुई थी। रोहतक पर तो मानो इंसानी कहर बरपा जिसमें इंसानियत शर्मशार हो गई। जिस स्‍कूल ने न जाने कितने अफसर दिए, उसी पठानिया स्‍कूल में तोड़फोड़ कर आग लगा दी गई। बंटवारे के दौरान पाकिस्‍तान के झंग जिले से शहर आया भामरी परिवार, जिसने केले बेचकर आज रिवोली नाम से शहर में होटल खड़ा किया था, उसे उपद्रवियों ने फूंक दिया। तीन भाई 12 साल पहले बिहार के मुजफ़फरपुर जिले से रोजी-रोटी की तलाश में रोहतक आए थे, झूठे बर्तन साफ कर उन्‍होंने ताज नाम से होटल शुरू किया था, जोकि एक ढाबा था, यहां रोजाना न जाने कितने जाट और गैर जाट सस्‍ता खाना खाकर अपना पेट भरते थे, उपद्रवियों ने इसे भी आग के हवाले कर दिया। यह तो बानगी मात्र है, ऐसी ही न जाने कितनी कहानियां यहां जन्‍मीं जिन्‍होंने मात्र नौ दिन के उन्‍माद में दम तोड़ दिया। इस उन्‍माद में अब बची है तो सिर्फ राख, राख और राख। आज हैपनिंग हरियाणा रो रहा है। प्रदेश को दोबारा शाइनिंग हरियाणा जैसा सपना दिखाने वाले मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर अन्‍य प्रदेशों में रोड शो कर रहे हैं। अंतिम रोड शो उन्‍होंने मुंबई में किया। इन्‍वेस्‍टर्स से मिले और उन्‍हें हरियाणा आने का न्‍योता दिया। अभी 15 फरवरी की ही बात है, जब एक शिष्‍टमंडल रोहतक होते हिसार आया। यहां की गुरु जंबेश्‍वर यूनिवर्सिटी में शिष्‍टमंडल ने सीधे यही कहा कि हरियाणा में भैंसें अधिक हैं, उस समय उन विदेशियों की बात जरूर चुभी, मगर वो सच ही बोल के गए थे। उनसे जितना बन पड़ा, उन्‍होंने अपना विरोध पढ़े-लिखे अंदाज में कर दिया। यह तो साबित हो गया कि मनोहर लाल भी जमीनी हकीकत से दूर सिर्फ मार्केटिंग ही कर रहे थे और वो भी सच से कोसो दूर रहे।
अब उद्योगों की ही बात करें तो रोहतक में एशियन पेंट की फैक्‍टरी जला दी गई। देश में सबसे तेजी से निवेश करने वाली कंपनी मारुति सुजुकी का गुड़गांव प्‍लांट शनिवार से ही बंद पड़ा है। आखिर क्‍यों, इस प्‍लांट में रोजाना पांच हजार कारों का निर्माण किया जाता था। इस समय कंपनी को रोजाना 2500 करोड़ रुपये की हानि हो रही है। इसके बावजूद मारुति के कदम ठिठके हुए हैं। दो वर्ष पहले भी मारुति सुजुकी ने राज्‍य में बिगड़ी कानून व्‍यवस्‍था का हवाला देकर देश में अपना दूसरा प्‍लांट गुजरात में लगाने का निर्णय लिया था। यकीनन, आज मारुति के संस्‍थापकों को अफसोस हो रहा होगा। इस समय मारुति के अफसर भी डरे हुए हैं। उन्‍होंने ऐसा उन्‍माद पहले कभी नहीं देखा। एक भीड़ जिसे उपद्रवी ही कहेंगे, उसने रोहतक में मारुति के गोदाम में रखी कारों को आग लगा दी। एक साथ लाइन में खड़ी कारों के साथ उन आग की लपटों में स्‍थानीय रोजगार भी उस समय जल रहा था। अब इस आंदोलन ने एक पखवाड़े के अंदर होने वाले निवेशक सम्‍मेलन की सफलता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रदेश में सबसे ज्‍यादा रोजगार देने वाली कंपनियों ने भी बाहर का रास्‍ता पकड़ लिया तो प्रदेश में रोजगार के अवसर और कम हो जाएंगे। प्रदेश में स्‍वरोजगार की बात करें तो 70 फीसद लोग स्‍वरोजगार से ही जुड़े हैं। उपद्रव का सबसे ज्‍यादा असर इन्‍हीं पर ही पड़ा है और ऐसे लोगों के पास अपने नुकसान का आकलन तक करने का कोई पैमाना नहीं बचा है। मोटे तौर पर बात करें तो किला रोड पर नीरू नारी क्रिएशन के नाम से दुकान चलाती हैं। उन्‍होंने कर्ज लेकर दुकान तैयार की थी। सैनी रेवड़ी के नाम से रोहतक की प्रसिद्ध दुकान थी, उसे भी उपद्रवियों ने आग के हवाले कर दिया। ऐसे ही मामले रोहतक की गलियों में भरे पड़े हैं। इन लोगों के पुनर्वास की कोई योजना नहीं है और उन्‍हें इस सरकार पर भरोसा भी नहीं है क्‍योकि तबाही का ये मंजर इन लोगों ने अपनी आंखों के सामने देखा, उन्‍माद के समय सरकार कहां थी, यकीनन सो रही थी, पुलिस कहां थी, यकीनन भागी हुई थी, सेना इतनी मजबूर थी कि उसे रोहतक शहर के अंदर घुसने ही नहीं दिया जा रहा था। क्‍या इतनी मजबूर हो सकती है सेना, कभी नहीं। इसका मतलब सरकारी प्रशासन तंत्र पंगु बना उपद्रवियों का समर्थन कर रहा था। नेता अपनी रोटी सेंक रहे थे। छह दिन बाद जब रोहतक बुरी तरह जल रहा था तब पूर्व मुख्‍यमंत्री हुड्डा जागे। जब उन्‍हें रोहतक आने से मना कर दिया तो जंतर-मंतर पर बैठ गए। यह कैसी सियासत थी। हुड्डा के राजनीतिक सलाहकार प्रोफेसर बीरेन्‍द्र के ऑडियो ने तूफान खड़ा कर दिया, जिसमें और दंगे भड़काने की बात कही गई। हुड्डा लौटे तो उन्‍हें जनता का कोप सहना पड़ा। व्‍यापारियों ने उनका घर घेरा, उनके ऊपर जूता उछाला। वहीं मनोहर लाल को तो उल्‍टे पांच लौटना पड़ा। आंख में पट्टी बांधे मनोहर सरकार हो या राजनीति की धुरी रहे हुड्डा। इन नेताओं को लेनिन को भी जरूर पढ़ना चाहिए। लेनिन कहा करते थे कि नेता सिर्फ अपने कामों के प्रति ही जवाबदेह नहीं होता बल्कि उन कामों के प्रति भी जवाबदेह होता है, जिनका वह नेतृत्‍व करता है।
कुछ लोग कह रहे हैं कि सारा उन्‍माद सत्‍ता के हस्‍तांतरण के लिए किया गया। इस उन्‍माद में आरक्षण तो बहुत पहले ही छूट गया था। नौ दिन बाद मनोहर लाल ने आरक्षण दे तो दिया मगर कैसे देंगे ये उन्‍हें अभी तक नहीं पता है। और यदि इसी तरह आरक्षण देना ही था तो पहले ही दिन क्‍यों नहीं दे दिया गया। मनोहर सरकार ने अब ये कौन सी नई नजीर पेश की। इसका त्‍वरित असर भी देखने को मिल गया। हरियाणा खत्‍म तो राजस्‍थान शुरू। कानपुर में भी सवर्णों ने जनेऊ उतारकर आरक्षण मांगना शुरू कर दिया। अब देखिए आगे-आगे होता है क्‍या।