Monday, December 24, 2012

आंखें तेरी खराब हैं परदा मैं क्यों करूं


पुराने समय में औरत को व्यक्ति नहीं वस्तु समझा जाता था। वो पुरुषों के उपभोग की चीज होती थी। चाहे वह राजा हो, डाकू या एक आम नागरिक। राजा युद्ध में जिस राज्य को जीतता वहां की औरतों को अपनी दासता में रखता। उनका उपभोग कर उन्हें दूसरों को सौंप दिया जाता था। डाकू भी औरतों का अपहरण कर उनका उपभोग करता था। व्यापारी तो औरतों को खरीद कर ऊंचे दामों में आगे बेच देता था। यदि आम नागरिक होता था तो कई-कई शादियां कर औरतों का उपभोग करता था। औरत पर जुल्मों की कहानी तो भारत के पौराणिक इतिहास से जुड़ी हुई है। यही सिलसिला अनवरत जारी है।

आज के समाज में जब हम औरतों को आधी आबादी के रूप में देखते हैं। ऐसे में कहीं कोई मनचला उसे उपभोग की नजर से देखता है। न सिर्फ देखता है बल्कि उसे हासिल करने के लिए मर्यादा की सभी सीमाएं लांघ देता है। अपनी हवस पिपाशा को शांत करने के लिए वह उसे न जाने ऐसे कितने जख्म दे जाता है जो कभी भरे नहीं जा सकते हैं। दिल्ली की व्यस्त सड़क पर जहां गाड़ियों के चालान काटने के लिए पुलिस वाले लगे रहते हैं। उगाही और कमाई में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में चलती बस से मासूम की दर्दभरी आवाज भी सुन नहीं पाते हैं। संसद में हंगामे और पुलिस की सख्ती के बाद भी दिल्ली में एक और गैंगरेप हो जाता है। इस बार कालका जी इलाके में एक महिला के साथ वहशी गैंगरेप करते हैं। पुलिसिया चुनौती पर वहशियों का यह करारा जवाब होता है। यही नहीं शर्मसार कर देने वाली घटना मऊ में भी हुई। यहां तो सरकारी व्यवस्थाओं को तार-तार करते हुए वहशियों ने रोडवेज के वेटिंग रूम में गैंगरेप कर डाला। शर्म की बात है वहशियों की नजर महिलाओं, युवतियों के अलावा अब बच्चों पर भी पड़ गई है। वे इन्हें सॉफ्ट टारगेट की तरह देखने लगे हैं। 18-20 साल के युवा से लेकर 45-50 साल के अधेड़ भी दरिंदे बनते जा रहे हैं। छोटे बच्चे जो कुछ समझ नहीं सकते, जो कुछ कह नहीं सकते, जिन्हें रेप का मतलब तब नहीं पता, इन दरिंदों के शिकार हो रहे हैं। आगरा में एक अधेड़ कैफे संचालक तो फ्री में वीडियोगेम खिलाने के बहाने बच्चियों से अश्लील हरकत करते पकड़ा गया। हम कानपुर की दिव्या का हाल भी नहीं भूले, वहां स्कूल संचालक ने उसके साथ बलात्कार जैसे भयावह कृत्य को अंजाम दिया। उसकी उम्र महज पांच साल थी। कानपुर की ही छह साल की कविता के साथ एक नर्सिंग होम में बलात्कार किया गया। देहरादून में डीएम ऑफिस के पास एक युवती का शव नाले में मिला था। वहशियों द्वारा बलात्कार के बाद उसकी हत्या की गई थी।
हम नवरात्र में देवीपूजन करते हंै। कंजिका खिलाते हैं। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि नौ वर्ष तक की बेटी देवी का प्रत्यक्ष स्वरूप होती है। इलाहाबाद के करेली में छह साल की मुस्लिम बच्ची के साथ दुष्कृत्य किया गया। उसका कुसूर इतना था कि वो अपने घर के बाहर खेल रही थी। मोहल्ले के ही एक वहशी ‘अंकल’ आए और टॉफी दिलाने के लालच में उसे ले गए। उन अंकल का राज न खुल जाए, इसलिए उस बच्ची को मौत के घाट भी उतार दिया। क्या उसका कसूर यह था कि वो बेटी पैदा हुई?
यदि पुराने समय में औरत को लेकर विषमता थी तो समाधान भी निकाले गए। उस जमाने में असुर थे तो भगवान शंकर ने अद्र्धनारीश्वर रूप धर कर जगत को औरत के महत्व के बारे में जागरूक किया था। पार्वती जी ने काली का स्वरूप धर कर शुम्भ-निशुम्भ का वध कर सारे संसार को आदि शक्ति से परिचित कराया था। श्रीराम ने माता सीता को एक स्त्री का वचन देकर कई रानियों से विवाह की पद्धति को समाप्त किया था। पुरुष-स्त्री की विषमता को तो उसी क्षण तोड़ दिया गया था। पर दुर्भाग्य है कि समय-समय पर आसुरी शक्तियां पनपती रहीं।
आज सवाल उठना लाजमी है कि पुरुष प्रधान समाज में नारी की जगह कहां है? बेटियां कहां सुरक्षित हैं? बच्चियां घर से बाहर बेखौफ क्यों नहीं खेल सकती हैं। गंदे अंकल गंदा काम कब तक करते रहेंगे? बेबस बेटियों के बाप के आंसू कब तक बहते रहेंगे? ऑफिस में युवतियां कब तक शोषण का शिकार बनेंगीं? महिलाओं को कब तक गंदे फिकरे सहने पड़ेंगे? और अपनी राहों से भटका युवा कब तक मनचला, मजनू, आशिक मिजाज, छिछोरा बना रहेगा?

-ज्ञानेन्द्र कुमार